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अनु॑ त्वा॒ रथो॒ऽअनु॒ मर्यो॑ऽअर्व॒न्ननु॒ गावोऽनु॒ भगः॑ क॒नीना॑म्। अनु॒ व्राता॑स॒स्तव॑ स॒ख्यमी॑यु॒रनु॑ दे॒वा म॑मिरे वी॒र्यं᳖ ते ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। त्वा॒। रथः॑। अनु॑। मर्यः॑। अ॒र्व॒न्। अनु॑। गावः॑। अनु॑। भगः॑। क॒नीना॑म्। अनु॑। व्राता॑सः। तव॑। स॒ख्यम्। ई॒युः॒। अनु॑। दे॒वाः। म॒मि॒रे॒। वी॒र्य᳖म्। ते॒ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को कैसे राजप्रजा के कार्य सिद्ध करने चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अर्वन्) घोड़े के तुल्य वर्त्तमान विद्वन् ! (ते) आप के (कनीनाम्) शोभायमान मनुष्यों के बीच वर्त्तमान (देवाः) विद्वान् (व्रातासः) मनुष्य (अनु, वीर्यम्) बल-पराक्रम के अनुकूल (अनु, ममिरे) अनुमान करें और (तव) आप की (सख्यम्) मित्रता को (अनु, ईयुः) अनुकूल प्राप्त हों (त्वा) आप के (अनु) अनुकूल (रथः) विमानादि यान (त्वा) आपके (अनु) अनुकूल वा पीछे आश्रित (मर्यः) साधारण मनुष्य (त्वा) आपके (अनु) अनुकूल वा पीछे (गावः) गौ और (त्वा) आप के (अनु) अनुकूल (भगः) ऐश्वर्य होवे ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्य अच्छे शिक्षित होकर औरों को सुशिक्षित करें, उन में से उत्तमों को सभासद् और सभासदों में से अत्युत्तम सभापति को स्थापन कर राज प्रजा के प्रधान पुरुषों की एक अनुमति से राजकार्यों को सिद्ध करें, तो सब आपस में अनुकूल हो के सब कार्यों को पूर्ण करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथं राजप्रजाकार्याणि साधनीयानीत्याह ॥

अन्वय:

(अनु) पश्चादानुकूल्ये वा (त्वा) त्वाम् (रथः) यानानि (अनु) (मर्यः) मनुष्याः (अर्वन्) अश्व इव वर्त्तमान (अनु) (गावः) (अनु) (भगः) ऐश्वर्यम् (कनीनाम्) कमनीयानां जनानाम् (अनु) (व्रातासः) मनुष्याः। व्राता इति मनुष्यनामसु पठितम् ॥ (निघ०२.३) (तव) (सख्यम्) मित्रस्य भावं वा (ईयुः) प्राप्नुयुः (अनु) (देवाः) विद्वांसः (ममिरे) मिनुयुः (वीर्यम्) पराक्रमं बलम् (ते) तव ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अर्वन् विद्वन् ! ते कनीनां मध्ये वर्त्तमाना देवा व्रातासोऽनुवीर्यमनुममिरे तव सख्यं चान्वीयुस्त्वानु रथो त्वानु मर्यो त्वाऽनु गावो त्वाऽनु भगश्च भवतु ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि मनुष्याः सुशिक्षिता भूत्वाऽन्यान् सुशिक्षितान् कुर्युस्तेषां मध्यादुत्तमान् सभासदः सम्पाद्य सभासदां मध्यादत्युत्तमं सभेशं स्थापयित्वा राजप्रजाप्रधानपुरुषाणमेकानुमत्या राजकार्याणि साधयेयुस्तर्हि सर्वेषामनुकूला भूत्वा सर्वाणि कार्याण्यलं कुर्य्युः ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर माणसे चांगली सुशिक्षित बनून इतरांना सुशिक्षित करतील व त्यातून जे उत्तम असतील त्यांना सभासद करून त्यातही जो अत्युत्तम असेल त्याला राजा करतील तर राजा व प्रजा एकमेकांच्या अनुमतीने राज्य करू शकतील व सर्वजण अनुकूल झाल्यास सर्व कामे पूर्ण होतील.